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विसंगतियों की व्याख्या है मीरा का काव्य: प्राे० गिरीश चन्द्र त्रिपाठी, नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

हमारे पूर्वजाें ने अपने शरीर काे प्रयाेगशाला बनाया, दर्शन-दृष्टि एवं विचार दिया, जाे हमारे जीवन के मूल में प्रदर्शित है। मीरा ने जिन विसंगतियों काे समझा, उसे समाज काे बताया। हम कह सकते हैं कि मीरा का काव्य विसंगतियों की व्याख्या है। यह बातें नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित तथा आईसीएसएसआर, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दाे दिवसीय राष्ट्रीय संगाेष्ठी "भक्तकवि मीराबाई का सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतिपाद्य" विषय के उद्घाटन सत्र में बताैर मुख्य अतिथि उ.प्र. राज्य उच्च शिक्षा परिषद के पूर्व अध्यक्ष प्राे. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी ने अपने उद्बाेधन में कही। उन्हाेंने आगे कहा कि जाे श्रेष्ठ हाेता है, उनका नाम सर्वप्रथम आता है, इसलिए महिलाएँ श्रेष्ठ हैं। 

      कुलाधिपति जे. एन. मिश्र ने अपने सम्बाेधन में कहा कि भारत का स्वरूप विभिन्न भागों एवं विचाराें से निर्मित है। हमारे धर्म व विश्वबंधुत्व के विचाराें काे विश्व मानता है। इस संगाेष्ठी से शाेधछात्रों काे अपने परिश्रम व सत्यता द्वारा शाेध में इन विषयाें के विविध पक्षाें काे सामने लाने में मदद मिलेगी। पद्मश्री डॉ. विद्याबिन्दु सिंह ने अपने उद्बाेधन में कहा कि मीराबाई जन-जन के कण्ठ में हैं। मीरा ने लाेकनिन्दा काे परे हटाकर भक्ति की सरिता बहायी। 'हरि तुम हराे जन की पीर', मीरा ने स्त्रियों काे सिखाया कि अपनी बात कैसे करनी चाहिए। 

       माेहन लाल सुखाड़िया विश्विद्यालय उदयपुर के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्राे. माधव हाड़ा ने अपने उद्बोधन में कहा कि मीरा की लाेकव्याप्ति सर्वाधिक है। मीरा की कविता, समावेशी, लचीली और उदार है। उनकी कविताएँ अधिकतर उत्तर भारतीय समाज के सुख-दुःख की कविता है। मीरा आत्मसचेत और स्वावलम्बी स्त्री है। प्रतिकुलपति डॉ. एस. सी. तिवारी ने मीरा के प्रेम और गिरधर गाेपाल की भक्ति के साथ तुलसीदास काे मीरा द्वारा लिखे पत्र की व्याख्या की। डॉ. आशीष शिवम ने संगाेष्ठी काे शाेध छात्राें व शिक्षकाें के लिए उपयाेगी बताया। संगाेष्ठी के संयाेजक डॉ. हिमांशु शेखर सिंह ने राष्ट्रीय संगाेष्ठी की रूपरेखा प्रस्तुत की।

        इस अवसर पर डाॅ. हिमांशु शेखर सिंह द्वारा सम्पादित 'भक्तकवि मीराबाई : चिन्तन-अनुचिन्तन', 'आधी आबादी : चिन्तन के विविध आयाम' तथा डाॅ. संतेश्वर मिश्र द्वारा सम्पादित 'रिसर्च मेथडोलाजी' पुस्तक का विमोचन भी किया गया। उद्घाटन सत्र का 

संचालन डॉ. अमृता सिंह ने तथा द्वितीय सत्र का संचालन डॉ. सव्यसाची ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. राजेश तिवारी तथा राष्ट्रीय संगाेष्ठी का संयाेजन डॉ. हिमांशु शेखर सिंह ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में शिक्षकगण, शाेधार्थी, एवं छात्र-छात्राएँ माैजूद रहे।

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