गुजरात शहर में स्थित भगवान शिव का यह मंदिर स्तंभेश्वर महादेव के रूप में जाना जाता है. तो क्या हैं इस मंदिर से जुड़े तथ्य, आईये जानते हैं|
गुजरात के स्तंभेश्वर मंदिर का उल्लेख महाशिवपुराण में रूद्र संहिता भाग-2 के अध्याय 11 में किया गया है| इस मंदिर की खोज आज से लगभग 150 साल पहले हुई थी| यह मंदिर बड़ोदरा से 40 मील की दूरी पर अरब सागर के कैम्बे तट पर स्थित है| मंदिर में स्थापित शिवलिंग लगभग 4 फ़ीट ऊंचा और 2 फ़ीट के व्यास का है|
इस मंदिर में शिवलिंग का दर्शन दिन में केवल एक बार होता है| बाकी समय यह मंदिर समुद्र में डूबा रहता है| समुद्र तट पर दिन में दो बार ज्वार भाटा आता है जिस वजह से पानी मंदिर के अंदर पहुंच जाता है और मंदिर नज़र नहीं आता. ज्वार के उतरते ही मंदिर फिर से दिखाई देने लगता है|
ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह जलमग्न हो जाता है और उस समय वहां किसी को भी जाने की अनुमति नहीं होती| यहां दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को ख़ास तौर से पर्चे बांटे जाते हैं| इन पर्चों में ज्वार भाटा के आने का समय लिखा होता है ताकि उस वक़्त मंदिर में कोई ना रहे|
पौराणिक कथा की मानें तो ताड़कासुर ने घोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर अमर होने का वरदान मांगा था| भगवान शिव ने उसका यह वरदान नकार दिया था जिसके बाद उसने दूसरे वरदान के रूप में केवल शिव पुत्र द्वारा अपनी मृत्यु मांगी थी| वरदान मिलने के बाद ताड़कासुर ने अपने अत्याचारों से हर तरफ हाहाकार मचा दिया था| उससे परेशान होकर देवगण भगवान शिव के पास गए| तब श्वेत पर्वत के पिंड से कार्तिकेय का जन्म हुआ और उन्होंने ही ताड़कासुर का वध किया|
परंतु यह पता लगने पर कि वह भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त था कार्तिकेय आत्मग्लानी से भर गए|
इस पर भगवान विष्णु ने एक उपाय बताया कि वह यहां पर शिवलिंग स्थापित करें और रोज़ माफ़ी मांगें| इसलिए मंदिर रोजाना समुद्र में डूबकर और फिर वापस आकर आज भी अपने किये की माफी मांगता है| इस तरह से यह शिवलिंग यहां विराजमान हुआ और तबसे ही इस मंदिर को स्थंभेश्वर के नाम से जाना जाता है|
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